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पुरातात्त्विक स्रोतों के अंतर्गत सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत अभिलेख हैं। ये अभिलेख अधिकांशतः स्तंभों, शिलाओं, ताम्रपत्रों, मुद्राओं, पात्रों, मूर्तियों आदि पर खुदे हुए मिलते हैं। जिन अभिलेखों पर उनकी तिथि अंकित नहीं है, उनके अक्षरों की बनावट के आधार पर मोटेतौर पर उनका काल निर्धारित किया जाता है।

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भारत की स्वतन्त्रता और विभाजन साथ-साथ मुख्य लेख: आधुनिक भारत और स्वतन्त्रता के बाद भारत का संक्षिप्त इतिहास

मध्य एशियाई संपर्कों की शुरुआत और बैक्ट्रियन यूनानियों का आक्रमण

हल्दीघाटी की लड़ाई (अकबर द्वारा महाराणा प्रताप की हार)

आर्य लोग खानाबदोश गड़ेरियों की भांति अपने जंगली परिवारों और पशुओं को लिए इधर से उधर भटकते रहते थे। इन लोगों ने पत्थर के नुकीले हथियारों से काम लेना सीखा। मनुष्यों की इस सभ्यता को वे 'यूलिथ- सभ्यता' कहते हैं। इस सभ्यता में कुछ सुधार हुआ तो फिर 'चिलियन' सभ्यता आई। इन हथियार औजारों की सभ्यता के समय का मनुष्य नर वानर के रूप में थे। उनमें वास्तविक मनुष्यत्व का बीजारोपण नहीं हुआ था।

हर्यंका कुल सिसुंगा वंश का बिंबिसार – कालसोक – मगध साम्राज्य (काकावर्णिन)

दूसरे परियोजनाओं में विकिमीडिया कॉमन्स

भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वयंभु मनु ने व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था। राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे।

लॉर्ड इरविन ने वाइसराय के रूप में कार्य किया

यूनानी-रोमन लेखकों के विवरण सिकंदर के पूर्व, उसके समकालीन तथा उसके पश्चात् की परिस्थितियों से संबंधित हैं। इसलिए इनको तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है- सिकंदर के पूर्व के यूनानी लेखक, सिकंदर के समकालीन यूनानी लेखक, सिकंदर के बाद के लेखक।

गौतम बुद्ध का जन्म (बौद्ध धर्म के संस्थापक)

मध्यकाल का सनातन संस्कृति में बहुत अधिक महत्व नहीं है । यह काल लुटेरों का था । इस काल में सनातन click here में अनेक योद्धा हुए जो हार कर भी जीते। जो सनातन रूप से विजयी है उसे हराया नहीं जा सकता । वह शाश्वत विजयी है ।

ब्रह्मगिरि (मैसूर), नर्मदा, विंध्य, गुजरात माइक्रोलिथ्स।

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